1. दिल्ली गरियारों की
देखी, देखी, इन सेकुलर बिरादरी वालों की शरारत देखी। जब से रेखा गुप्ता जी के सिर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री का ताज रखा गया है, तभी से बेचारी के इतिहास के पीछे पड़े हुए हैं। और कुछ नहीं मिला, तो खोद-खोदकर बेचारी के पुराने ट्वीट निकाल रहे हैं और सारी दुनिया को सुना रहे हैं कि मदाम ने केजरीवाल को कैसी-कैसी गालियां दे रखी हैं, कि राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वगैरह को कैसी-कैसी गालियों से नवाज रखा है। कह रहे हैं कि दिल वालों की दिल्ली क्या ऐसे ही सीएम की हकदार थी!
पहली बात तो यह है कि दिल्ली का दिल वालों के नाम कोई ठेका नहीं लिखा हुआ है? पहले कभी रही होगी दिल्ली दिल वालों की, पर अब अमृत काल चल रहा है। अमृतकाल में कोई भी चीज, मोदी जी के सिवा और किसी की एक्सक्लूसिव कैसे हो सकती है? दिल्ली कहीं-कहीं से दिलवालों की होगी भी तब भी, अब दिल्ली अब सबसे बढ़क़र गरियारों की है। तभी तो मोदी जी की पार्टी में गरियारों की भरमार है। उनकी पार्टी में रमेश बिधूड़ी हैं। पार्टी में परवेश वर्मा हैं, कपिल मिश्रा आदि हैं। मोदी जी की पार्टी में रेखा गुप्ता भी हैं। गरियारी का मजा सिर्फ मर्दों को ही क्यों मिले? औरतें अक्सर संकोच में रह जाती हैं और मर्द गरियारी के बल पर मोदी जी की पार्टी में बाजी मार जाते हैं। पर अब और नहीं। अमृत काल में और नहीं। रेखा जी सिर्फ गरियारी की पात्रता परीक्षा में ही पास नहीं हुई हैं, अपने एक से एक कुख्यात प्रतिद्वंद्वियों को गरियारी में पछाड़क़र सीएम की गद्दी पर पहुंची हैं। गरियारी हो या कुछ और, अब औरतों का जमाना आ चुका है।
ये सेकुलर मूर्ख क्या समझते हैं कि इनके खोद-खोदकर रेखा जी के गरियाव के ट्वीट निकाल कर लाने से, उन्हें सीएम की कुर्सी बख्शने वालों को कोई शर्म-वर्म आएगी? वह पूरे ग्यारह दिन की खोज का नतीजा हैं। फिर जब दिल्ली ही गरियारों की हो चुकी, फिर गरियाव में दुराव-छिपाव कैसा? रेखा जी के गरियाव की तो बात ही और है? क्या नफासत है, क्या रचनात्मकता है, अरविंद केजरीवाल या प्रियंका गांधी को उनकी गालियों में। वह गालियां सिर्फ देती नहीं हैं, गाती हैं, मंगल प्रयोजनों पर गालियां गाने की पुरानी उत्तर भारतीय परंपरा के अनुरूप। बस ऐसी ही बनी रहें, उनके गाली-गुफ्तार को सीएम की कुर्सी की नजर न लगने पाए।
2. अब एक देश, एक पेट यानी मोटापा भगाओ आंदोलन
इसे कहते हैं जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ। मोदी जी ने गहरे पानी पैठ कर देश की असली चुनौती को खोज निकाला है। ग्यारह साल लग गए, पर मोदी जी भी लगे रहे। अपने ध्येय से जरा भी नहीं भटके।
बेशक, इन सालों में उनका ध्यान भटकाने वाली एक के बाद एक बेशुमार चीजें आयीं। किसी ने गरीबी का शोर मचाकर मोदी जी का ध्यान भटकाने की कोशिश की, तो किसी ने भूख का झूठा शोर मचाया ; किसी ने बेरोजगारी का भ्रम फैलाया, तो किसी ने महंगाई के आंकड़ों से भरमाया।
और कुछ नहीं मिला तो बहुतों ने बढ़ती असमानता का ही शोर मचा दिया। पर मोदी जी का तप भंग नहीं कर पाए। और तप भंग करते भी तो कैसे? दूध का जला छाछ भी फूूंक-फूंक कर पिये। याद नहीं है कि कैसे किसानों वाले मामले में मोदी जी की तपस्या में कुछ कमी रह गयी थी, जिसकी वजह से उन्हें तीन कृषि कानून वापस लेने पड़े थे। तपस्या में कमी रह जाने की वैसी गलती मोदी जी दोबारा कैसे होने दे सकते थे।
इस बार उन्होंने किसी भी चीज को अपना ध्यान भंग नहीं करने दिया। न शेयर बाजार के लुढ़कने को, न डालर के मुकाबले रुपए के बैठने को, न अर्थव्यवस्था के मंदी के दुश्चक्र में फंसने को। और तो और, राष्ट्र सेठ के गले में अमरीकी कार्रवाई का फंदा पड़े रहने को भी नहीं। गहरे पानी में तब तक पैठते रहे, पैठते रहे, जब तक देश के सामने खड़ी असली चुनौती हाथ में नहीं आ गयी -- मोटापे की चुनौती। और अपने मन की बात से ही राष्ट्र के नाम जोरदार गुहार लगायी -- मोटापा घटाओ, देश बचाओ! चिकनाई 10 फीसद कम खाओ, देश को स्वस्थ्य बनाओ!
अब देश में करीब-करीब बाकी सब कुछ तो एक हो ही चुका है। एक देश की तो खैर बात ही क्या करनी। जम्मू-कश्मीर को तोड़कर और उसे राज्य से कमतर छोड़कर, ऑफिशियली एक निशान और एक विधान भी हो चुका है। दक्षिण वालों की हाय-हाय गवाह है कि एक भाषा भी हो ही चुकी है। एक टैक्स तो खैर हो ही चुका है। उत्तराखंड से शुरुआत हो गयी है, गेंद अब गुजरात के पाले में पहुंच गयी है यानी एक नागरिक कानून भी हो ही रहा है। एक चुनाव का भी फैसला सरकार तो कर ही चुकी है, बस संसद से मोहर लगने की देर है।
और तो और एक नॉन बायोलॉजीकल सुल्तान भी गद्दी पर आ चुका है। बस, एक देश, एक पेट की ही कसर थी, सो अब उसे ही पूरा किए जाने का नंबर है। सब का एक सा, पिचका हुआ पेट!
मोटापे से मुक्ति वाले फायदों जैसे शुगर की बीमारी से बचाव, दिल की बीमारियों से बचाव आदि, आदि के अलावा भी, पिचके पेट के अपने भी अनेक फायदे हैं। पहला और सबसे बड़ा फायदा तो यही कि जब सबके पेट पिचक जाएंगे तो, गरीब और अमीर का भेद ही मिट जाएगा। जो कम खाएगा, उसका भी पेट अंदर और जो ज्यादा खाकर ज्यादा पचाएगा, उसका भी पेट अंदर, कोई अंतर ही नहीं बता पाएगा। इससे देश की एकता भी बढ़ेगी और गरीबों की गरीबी भी मिट जाएगी।
इसके बाद कोई चाहे भी तो भूख के मामले में भारत के निचले स्थान की ओर इशारा कर के हमें शर्मिंदा नहीं कर पाएगा। हम फौरन ज्यादा खाकर जिम में ज्यादा पचाया हुआ पेट आगे कर देंगे, नये जमाने के नये राष्ट्र सेठ का पेट। उसे कौन भूख की निशानी कह पाएगा!
और जाहिर है कि जब पिचके पेट का चलन और बढ़ेगा और भारत शत-प्रतिशत पिचका पेट अवस्था की ओर बढ़ेगा, तो चिकनाई का आहार तो 10 फीसद घटेगा ही, बाकी सब चीजों का आहार भी घटेगा। और तो और, दुबले देश की कपड़े की खपत भी घट जाएगी। इससे हम ज्यादा निर्यात कर सकेंगे। इससे हम अपने यहां मजदूरी घटा सकेंगे। इससे हमारे उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में और ज्यादा प्रतिस्पर्द्धी हो सकेंगे और हम ज्यादा निर्यात कर पाएंगे। यानी एक बार एक देश, एक पेट पर अमल होने लग जाए, आर्थिक संकट-वंकट तो खुद-ब-खुद छूमंतर हो जाएगा।
और थैंक यू मोदी जी, आपने सिर्फ लक्ष्य दिखाकर नहीं छोड़ दिया है। आपने बाकायदा लक्ष्य को हासिल करने का रास्ता भी दिखाया है। आंदोलन का रास्ता। आपने दस मोटापा-विरोधी एंबेसेडर मनोनीत कर के शुरूआत कर दी है। ये एंबेसेडर भी दस-दस लोगों को मनोनीत करेंगे। फिर ये दस-दस लोग भी आगे दस-दस लोगों को मनोनीत करेंगे। इस तरह एक मोटापा-विरोधी शृंखला बनती चली जाएगी और एक जनांदोलन खड़ा हो जाएगा। अब प्लीज कोई इसकी याद मत दिलाने लगना कि स्वच्छता का भी तो इसी तरह से आंदोलन खड़ा किया गया था, ऐसे ही स्वच्छता एंबेसेडर नियुक्त किए गए थे ; उस जनांदोलन का क्या हुआ? हुआ क्या, स्वच्छता हो तो गयी! और अगर थोड़ी बहुत अस्वच्छता इसके बावजूद भी रह गयी है, तो इसलिए कि स्वच्छता के लिए सिर्फ आंदोलन काफी नहीं था। उसके लिए, प्रचार के अलावा जमीनी सरकारी प्रयास की भी जरूरत थी।
अमरीकी अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसी, यूएसऐड के पैसे से कहां पूरा पड़ने वाला था। सो रह गयी होगी, जमीनी स्तर पर स्वच्छता में कुछ कोर-कसर। पर मोटापा हटाओ के लिए प्रचार और सिर्फ प्रचार ही काफी है। बाकी सब तो लोगों को खुद ही करना है। इस आंदोलन के पूरी तरह से सफल होने की गारंटी है। यह मोदी की गारंटी है यानी गारंटी पूरी होने की भी गारंटी।
मोदी जी के विरोधी इसमें भी अमीर-गरीब का बंटवारा किए बिना नहीं मानेंगे। वे कहेंगे कि पिचासी फीसद आबादी ने मोटापा देखा ही नहीं है, फिर मोटापा मिटाएगी कैसे? लेकिन, बात इससे उल्टी है। मोटापा मिटाने के लिए, मोटापे को देखना जरूरी कहां है? यह तो और भी अच्छी बात है कि ज्यादातर जनता पहले ही मोटापा-मुक्त है।
यानी यह ऐसा आंदोलन है जिसमें गरीब जनता को शुरुआत से ही बढ़त हासिल है। अमीरों को ही उनके साथ दौड़ने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी ; नोटबंदी की तरह। यह गरीबों को आगे लाने वाला आंदोलन है। यह सफल होने की गारंटी वाला आंदोलन है। गरीबी-वरीबी मिटने की ऐसी गारंटी कहां है?
3. डिग्री नहीं दिखाएंगे
दिल्ली यूनिवर्सिटी वालों की बात हमें तो बिल्कुल सही लगी। डिग्री नहीं दिखाएंगे। और क्यों दिखाएं पीएम की डिग्री? किसी को मतलब क्या है पीएम की डिग्री से? और कम से कम हर किसी ऐरे-गैरे नत्थू खैरे को तो पीएम की डिग्री नहीं दिखा सकते। मामूली कागज नहीं, पीएम की डिग्री है। देखना चाहने वाले की औकात भी तो देखनी चाहिए। हां! अदालत को ताक-झांक का इतना ही शौक हो, तो उसे तो फिर भी दिखा सकते हैं, चाहे बंद लिफाफे में ही दिखाना पड़े। पर पब्लिक को नहीं दिखाएंगे। कोई दिखाने की मांग करेगा, तब तो हर्गिज नहीं।
हम तो कहेंगे कि अदालत को इस पर भी विचार करना चाहिए कि डिग्री दिखाने की मांग करने वाले हैं कौन? क्या ये वही लोग नहीं हैं, जो साल-दो साल पहले ही, ‘‘कागज नहीं दिखाएंगे’’ के नारे लगा रहे थे, ‘‘हम कागज नहीं दिखाएंगे’’ के गीत गा रहे थे। और वह भी सिर्फ इसलिए कि मोदी जी-शाह जी ने कागज दिखाने के लिए कहा था? उनकी डिमांड एकदम सिंपल थी। भारत में गर रहना होगा, पर्चा-कागज दिखलाना होगा! पर भाई लोगों ने हंगामा खड़ा कर दिया। जगह-जगह शाहीनबाग खड़े कर दिए। संविधान के नाम से, अंबेडकर के नाम से, गांधी के नाम से, आंदोलन खड़े कर दिए। नारा बस एक -- कागज नहीं दिखाएंगे! और वही लोग अब कागज दिखाने की मांग कर रहे हैं। और किसी ऐसे-वैसे के नहीं, पीएम के कागज दिखाने की मांग कर रहे हैं। विश्व गुरु की डिग्री दिखाने की मांग कर रहे हैं। जरा सोचिए, बाकी दुनिया वाले क्या सोचते होंगे? कहांंट विश्व गुरु और कहां डिग्री दिखाने की मांग। और यह भी कि खुद इंडिया वालों को विश्व गुरु की डिग्री पर विश्वास नहीं है! मोदी जी की डिग्री देखने की मांग करना, एंटीनेशनल नहीं, तो और क्या है? हमेें तो हैरानी है कि देश के सोलिसिटर जनरल को इसके लिए सजा की मांग करने तक पहुंचने में इतना टैम लग गया। खैर! देर आयद दुरुस्त आयद, सबसे बड़े सरकारी वकील ने मांग तो की कि डिग्री दिखाने की मांग करने वालों को, सजा मिलनी चाहिए। यह तो विश्व गुरु का आसन हिलाना हुआ।
और ये डिग्री दिखाने की मांग करने वाले खुद को समझ क्या रहे हैं? मोदी जी को नौकरी दे रहे हैं क्या? उनके पास पहले ही नौकरी है, अच्छी भी और पक्की भी। डिग्री तो नहीं दिखाएंगे।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और 'लोक लहर' के संपादक हैं।
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