स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की शिब्ली कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग के छात्र छात्रों ने मनाई पुण्यतिथि





 संवाददाता अब्दुर्रहीम शेख़ 

आजमगढ़ शिब्ली नेशनल कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग के छात्र छात्रों ने मौलाना अबुल कलाम आजाद को उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हुए उनके द्वारा शिक्षा जगत में किये गया सुधारों एवं कार्यों पर  विस्तार पूर्वक चर्चा की  इस अवसर पर विभाग के अध्यक्ष डॉ शफ़ीउज्जमा ने अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि आजाद अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ थे। उन्होंने अंग्रेजी सरकार को आम आदमी के शोषण के लिए जिम्मेदार  ठहराया। उन्होंने अपने समय के मुस्लिम नेताओं की भी आलोचना की जो उनके अनुसार देश के हित के समक्ष साम्प्रदायिक हित को तरजीह दे रहे थे। अन्य मुस्लिम नेताओं से अलग उन्होने 1905 में बंगाल के विभाजन का विरोध किया और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अलगाववादी विचारधारा को खारिज  कर दिया। उन्होंने ईरान, इराक़ मिस्र तथा सीरिया की यात्राएं की। आजाद ने क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना आरंभ किया और उन्हें श्री अरबिन्दो और श्यामसुन्हर चक्रवर्ती जैसे क्रांतिकारियों से समर्थन मिला।
आज़ाद की शिक्षा उन्हे एक दफ़ातर (किरानी) बना सकती थी पर राजनीति के प्रति उनके झुकाव ने उन्हें पत्रकार बना दिया। उन्होने 1912 में एक उर्दू पत्रिका अल हिलाल का सूत्रपात किया। उनका उद्येश्य मुसलमान युवकों को क्रांतिकारी आन्दोलनों के प्रति उत्साहित करना और हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल देना था। उन्होने कांग्रेसी नेताओं का विश्वास बंगाल, बिहार तथा बंबई में क्रांतिकारी गतिविधियों के गुप्त आयोजनों द्वारा जीता। उन्हें 1920 में राँची में जेल की सजा भुगतनी पड़ी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1952 के संसदीय चुनावों में वे उत्तर प्रदेश की रामपुर संसदीय सीट से तथा 1957 के संसदीय चुनावों में हरियाणा की गुड़गांव संसदीय सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में सांसद चुने गए।
वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्होंने ग्यारह वर्षों तक राष्ट्र की शिक्षा नीति का मार्गदर्शन किया। मौलाना आज़ाद को ही 'भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान' अर्थात् 'आई.आई.टी.' और 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' की स्थापना का श्रेय है। उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की।
संगीत नाटक अकादमी (1953)
साहित्य अकादमी (1954)
ललितकला अकादमी (1954)
केंद्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होने पर सरकार से केंद्र और राज्यों दोनों के अतिरिक्त विश्वविद्यालयों में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा, कन्याओं की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की वकालत की ।
इस अवसर पर विभाग के छात्र गुलाम रसूल , प्रांजलि सिंह, उम्मम अशफाक , आस्था कुमारी , शमा अफरोज ,रेशम अफरोज ,साहिबा खातून , दिव्यशक्ति कुमार गौतम ,आलोक शर्मा एवं  सुषमा पाण्डेय ,कल्पना यादव ,खुशी श्रीवास्तव ,आयुषी यादव ,प्रतिभा यादव ने भी अपने विचार व्यक्त किए कार्यक्रम का सफल संचालन गुलाम रसूल व सुषमा पाण्डेय ने संयुक्त रूप से किया ।

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