यह खबर रुला देने वाली है क्योंकि अपने जिन बच्चों को बड़ा करने पढ़ाने- लिखाने और उन्हें उनके मुकाम तक पहुंचाने में मां- बाप जीवन भर यज्ञ करते हैं वही उन्हें छोड़ जाते है




संवाददाता ए के सिंह

हजारीबाग धनबाद झारखंड कलियुग घोर कलियुग पिता को कंधा भी अपनी औलादों का नसीब नहीं हुआ और तो और रिश्तेदार भी पहले मर गये 48 घंटे इंतजार खत्म धर्म पत्नी ने  सहयोगी संस्था और डाक्टर के सहयोगी जनों के साथ मिलकर किया अंतिम संस्कार यह खबर रुला देने वाली है।क्योंकि अपने जिन बच्चों को बड़ा करने पढ़ाने- लिखाने और उन्हें उनके मुकाम तक पहुंचाने में मां- बाप जीवन भर यज्ञ करते हैं।वही उन्हें छोड़ जाते है.डॉ प्रेम दास, हजारीबाग के एक विख्यात सर्जन, कोई सोच भी नहीं सकता था कि उनकी लाश 48 घंटों तक अपनों की आस में अस्पताल के मोर्चरी में पड़ी रहेगी। दो बेटियां, एक अमेरिका में और दूसरी मुम्बई में। अन्य नाते- रिश्तेदार बिहार- झारखंड में। अमेरिका से बेटी नहीं आयी तो मुम्बई से बेटी के बीमार होने का खबर आ गया। अन्य अपने भी नहीं आये। 48 घंटों के मोर्चरी में अपनों के इंतज़ार के बाद 77 वर्षीय डॉक्टर प्रेमदास का अंतिम संस्कार उनकी पत्नी प्यारी सिन्हा और कुछ साथी चिकित्सकों ने अज्ञात लाशों का दाह संस्कार करनेवाले समाजसे वी नीरज कुमार की मदद से खिरगांव शमशान घाट पर करा दिया।।




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